मैं आज़ाद हूँ
मैं परिंदा हूँ
मैं आसमान को छू सकता हूँ
मैं धरती को चूम सकता हूँ |
हर रोज़ मैं निकल पड़ता हूँ एक नयी मंजिल की खोज में
हर खोज घरोंदे से ले चलती है एक नयी दिशा में ||
एक नया आसमान
एक नयी धरती
कुछ फासला और
कुछ उम्मीदें नयी |
हर रोज़ मैं देखता हूँ एक नया सपना
हर रोज़ मैं बनाता हूँ एक दोस्त अपना ||
एक नया अजनबी
एक नया यार
कोई धोखा
कोई सहारा |
रास्ते कठिन, कई ठोकरें, मोड़ कई, मुश्किलें नयी
कुछ अजनबी यार, कुछ यार अजनबी ||
ज़िन्दगी आसान नहीं होती
जीवन ना है बुजदिलों का खेल |
बस बड़ चलो अपनी दिशा की ओर
बस बड़ चलो कुछ फासला और ||
Wonderful composition in pictures and in words!
ReplyDeletepics tera hai?? sounds good..
ReplyDeleteyes DK the pics are mine....taken at Humayun's Tomb :)
ReplyDeletewonderfully captured and expressed !
ReplyDeleteDK! picture sounds good or looks good ;) ???
ReplyDeletetoo good !
ReplyDeleteashok, when u r enlightened you can channelise any signal through any sense organ :-).after all ,all signals are Gods own signal
ReplyDeleteReally very sweet poem, i loved this one!
ReplyDelete@Mohinee: Thank you....
ReplyDelete@DK: what an idea sirji :P